एक_ग़ज़ल🙏
1222...1222...1222...1222हंँसाता है हमें खुद को रुला, भरपूर वो जोकर..
हुआ है दूर खुशियों से, बहुत मजबूर वो जोकर..
कईं है चाहने वाले यहांँ, किरदार को उसके,
बहुत टूटा हुआ अन्दर से, चकनाचूर वो जोकर..
निभाता है कईं किरदार जो, ख़ुद जी नहीं पाता,
सदा रहता सितारों सा, चमकता नूर वो जोकर..
पहनकर फिर मुखौटा वो, चला आता है महफ़िल में,
हटाता है मुखौटे तब सभी, मगरूर वो जोकर..
तमाशा बन भरी महफ़िल में, रखता है सभी को खुश,
तभी होता कहीं जाकर, बड़ा मशहूर वो जोकर..
हमेशा बांँटता खुशियांँ, भुलाकर दुख सभी अपने,
सिखाता भूलना गम को यही, दस्तूर वो जोकर..
भले मानो नहीं मानो मगर, "अद्भुत" यही सच है,
कि रहता है हमारे बीच बन, नासूर वो जोकर..
© चीनू शर्मा "अद्भुत"®✍️