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Monday, July 27, 2020

बहुमुखी प्रतिभा के धनी मुंशी प्रेमचंद



सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, साहित्यकार, नाटककार और विचारक के रूप में सर्वाधिक जाना पहचाना नाम प्रेमचंद जी का है।इन्हें हिंदी और उर्दू के लोकप्रिय साहित्यकारों में जाना जाता है। आपका जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस शहर से चार मील दूर लमही गांव में हुआ था।आपका बचपन बहुत ही आर्थिक तंगी में गुजरा लेकिन बचपन से ही साहित्यिक रुचि रखते थे। ग्रामीण जीवन से उन्हें खास लगाव था। जीवन की विकट परिस्थितियों में उन्होंने अपनी रचनाओं को बारीकी से उकेरा है।उनकी हर रचना  सामाजिक, पारिवारिक, राजनीतिक हर मुद्दों पर  यथार्थ को दर्शाती हुई नजर आती है। प्रेमचन्द जी के द्वारा लिखित रचना पढ़ने पर ऐसा आभास होता है जैसे वो हमारे सामने ही घटित हो रही हो। उनकी शैली साधारण होती थी और उनकी रचनाओं की सर्वाधिक यही खासियत थी।

 प्रेमचन्द की रचनाओं में विभिन्न विधा देखने को मिलती है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रेमचन्द जी ने स्मरण, लेख, कहानी, उपन्यास नाटक आदि सभी विधा में अपनी लेखनी हम सबके सामने रखी है।हालांकि शुरुआत उनकी कथाकार के रूप में  हुई। गोदान से उनकी अलग पहचान बनी ,गोदान उपन्यास की रचना से उन्हें उपन्यास सम्राट के रूप में जाना जाने लगा।उनके बड़े घर की बेटी, रंगभूमि, दो बैलों की कथा, बूढ़ी काकी आदि प्रमुख कहानी थी। हिंदी समाचार पत्र के साथ-साथ उन्होंने हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया था। मुंशी प्रेमचन्द की रचनाओं में सामाजिक, राजनीतिक और पारिवारिक सभी को अपनी रचनाओं में समेट कर अपनी रचनाओं को जीवंत कर देते थे।

 साहित्य जगत में एक जगमगाता सीतारा चमकता सूरज के रूप में जाना जाता है। प्रेमचन्द को हिंदी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में 191८ से 1936 के कॉल खंड को प्रेमचंद युग कहा जाता है। प्रेमचंद जी की कहानी कथा, लघु कथा आदि सभी ने पढ़ी है मैंने भी उनकी बहुत सारी कहानी पढ़ी है।हिंदी साहित्य में उनकी रचनाओं को पढ़ना जैसे सच्चाई से सामना करना होता था। प्रेमचंद जी की कहानी मंत्र" शायद आपने भी पढ़ी होगी। इंसानियत का पाठ पढ़ाती यह कहानी किसी के भी दिल को छू जाती है। आज भी बहुत से लोग ऐसे मिल जाते हैं जो अपना फर्ज भूल कर ऐसो आराम से जिंदगी जीते हैं। "मंत्र" कहानी इसी इंसानियत को जगाती कहानी है।एक डॉक्टर जो अपना फर्ज भूल कर किसी की जान बचाने के बजाय अपनी खुशी को देख रहा था। जिससे उसे आनंद मिले और इसी आनंद को प्राप्त करने में वह अपना फर्ज भूल जाता है।

 "मंत्र" कहानी डॉ चड्ढा की है जो अपने नियम पर चलते हैं और अपने समय पर मरीज देखते हैं। इसके अलावा वह अपने आनंद के लिए गोल्फ आदि में समय व्यतीत करते हैं।एक दिन एक आदमी आता है जो अपनी बीमार लड़के को देखने की अपील करता है।डॉक्टर  चड्ढा के गोल्फ खेलने का समय हो चुका था इसलिए उन्होंने उसे सुबह आने को कहा और उसके बेटे को देखने से इंकार कर दिया। वह आदमी बहुत परेशान था क्योंकि इसके बीमार बेटे को डॉक्टर चड्ढा ने सुबह बुलाया और वह उसका इकलौता बेटा था बहुत परेशान हुआ वापस लौट गया क्योंकि हाथ पैर जोड़ने के बाद भी डॉक्टर चड्ढा ने सुबह ही आने को कहा और गोल्फ खेलने निकल पड़े। इसके बाद उस आदमी के बच्चे की मौत हो जाती है। डॉक्टर चड्ढा का अपना फर्ज भूलकर गोल्फ खेलने चले जाना इंसानियत को शर्मसार करती यह घटना रही और कहीं ना कहीं किसी के सच्चाई को दर्शाती भी है। बेटे की मृत्यु के बाद वह आदमी बहुत दुखी रहता था इकलौते बेटे के खो जाने का गम उसे सालता रहता लेकिन कहते हैं ना समय का फेर घूमता है और वापस वही लेकर आता है। इसी तरह समय भी करवट बदलता है बहुत सालों बाद डॉक्टर चड्ढा से सामना होता है। डॉक्टर चड्ढा एक बेटा और एक बेटी थे जो कॉलेज में पढ़ते थे। 1 दिन डॉक्टर चड्ढा के बेटे को सांप ने काट लिया जो सांप पालने का शौकीन था और मना करने के बाद भी सांपों से खेलता था। डॉक्टर चड्ढा के रोकने के बाद भी उसने सांपों को पाल रखा था एक दिन उसी सांप ने उनके बेटे को काट लिया सारा इलाज करने के बाद भी वो ठीक नहीं हुआ तो किसी ने झाड़ने फूकने वाले को बुलाया सभी आकर चले गए लेकिन उनका बेटा ठीक नहीं हुआ तब किसी ने उसे उसी आदमी के बारे में बताया जो कभी डॉक्टर चड्ढा के पास अपने इकलौते बेटे को लेकर आया था और वह झाड़ फूंक करता था। वह डॉक्टर चड्ढा आदमी को बुलाने कहता है लेकिन जैसे ही उस आदमी को यह पता चलता है कि डॉक्टर चड्ढा के बेटे को सांप ने काटा है उसने जाने से इनकार कर दिया लेकिन इंसानियत जाग जाती है और उस आदमी के मन में उथल-पुथल उठकर डॉक्टर चड्ढा के घर की ओर चल पड़ता है। आंधी, तूफान, ठंडी में भी वह डॉक्टर चड्ढा के घर चल पड़ता है और उसके बेटे की जान बचाता है और चुपचाप वहां से निकल जाता है। इंसानियत की जीत होती है इंसानियत को दर्शाती यह प्रेमचंद की कहानी बहुत ही पसंदीदा कहानी है।

प्रेमचन्द जी की कथा अनुसार बहुत सारी बातें हैं जो हमें हमेशा उनकी कथाओं में देखने को मिलती हैं और हमेशा कुछ अनमोल वचन सीखने को भी उनकी हर रचनाओं में मिलते हैं। सामाजिक, ग्रामीण हर जगह सटीक बैठती उनकी रचनाएं रहती हैं। उनके कुछ अनमोल शब्द आपके सामने हैं "खतरे से हमारी चेतना अंतर्मुखी हो जाती है" और यह बिल्कुल सही कहना है प्रेमचंद जी का। "आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन घमंड होता है जो हमेशा शक्की प्रवृत्ति का होता है"। "प्रेम और सत्कार जहां मिले वही घर है"। "जवानी जोश है।बल,साहस दया है"। प्रेमचंद जी के अनमोल वचन को बेखूबी हम आम जनजीवन में देखते और सुनते हैं। यथार्थ को दर्शाती उनकी हर रचना अपने आप में अनुपम संग्रह है। बहुआयामी प्रतिभा के धनी प्रेमचंद जी के बारे में कहना किसी के लिए भी नामुमकिन है क्योंकि उनके बारे में कुछ भी कहना "सूरज को दीपक" दिखाना होगा। जितना ऊंचा नाम उतने ही जमीन से जुड़े व्यक्ति थे। स्वाभिमान कूट-कूट कर उनमें भरा था।
 साहित्य सृजन और कमाल की लेखनी बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रेमचंद जी को शत शत नमन।


निक्की शर्मा रश्मि
मुम्बई, मीरा रोड

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