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Wednesday, August 5, 2020

डिप्रेशन अवसाद

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"आजकल डिप्रेशन या अवसाद हर घर की कहानी बनता जा रहा है"
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"समाप्त कर देना अपना जीवन,
संसार से लुप्त हो जाना।
बहुत दुखदायी होता है ,
यूँ खुद को मिटा लेना।"


डिप्रेशन या अवसाद
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अवसाद को अंग्रेजी में "डिप्रेशन" भी कहते हैं। 
बहुत से लोगो का यह मानना है कि डिप्रेशन बढ़ती आयु का परिणाम है और वृद्ध लोगों मे अधिक देखने को मिलता है। 
परन्तु ऐसा नहीं है अवसाद किसी भी आयु वर्ग के व्यक्ति को हो सकता है।
कभी - कभी हम सब जीवन में किसी ना किसी बात को लेकर थोड़ा परेशान हो जाते हैं। परन्तु इसे हम डिप्रेशन नहीं कह सकते क्योंकि यह आजकल की एक नार्मल प्रक्रिया है ।
परन्तु जब एक ऐसा दुखद अहसास काफी लम्बे समय तक हमें अपनी गिरफ्त में रखता है। हमें कुछ अच्छा नहीं लगता । यहाँ तक की हम खुद को भी पसंद नहीं करते। उदासी, काम में मन ना लगना , किसी से बात नहीं करना, अकेले रहना, स्वयं को कमरे में बंद रखना, खाना ना खाना, सोचते रहना, नकारात्मक विचारों से घिरे रहना , किसी पर विश्वास नही करना । आदि सब अवसाद, डिप्रेशन के कारण हैं।

डिप्रेशन के कारण:- 
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ऐसे तो डिप्रेशन के अनेको कारण हैं यहाँ मै उन में से कुछ कारण बता रही हूँ जो निम्नलिखित प्रकार से हैं:- 
1. मनुष्य अपने जीवन में काफी दुखी रहने लगता है। उसे हर चीज़ मे दुख का अनुभव होता रहता है।
2. किसी से प्रेम करता है परन्तु अपना प्रेम नहीं प्राप्त कर पाता।
3. अचानक नौकरी चली जाती है।
4. वैवाहिक जीवन ये कड़वाहट आने लगती है।5. प्रेमिका छोड़कर कहीं चली जाती है।
6. किसी बहुत करीबी की मौत हो जाती है।
7. व्यापार में नुकसान होकर सब बर्बाद हो जाता है।
8. परिवार की सारी ज़िम्मेदारी एक के ऊपर ही होना और उसका सही से पूर्ण ना कर पाना।
9. नौकरी ना मिलना।
10. व्यापार में घाटा
आदि अनेको कारण हैं।
 
अभी कुछ दिन पूर्व एक व्यक्ति की लाश रेल की पटरी पर मिली। कारण पता किया तो वह व्यक्ति लॉकडाउन मे व्यापार मे हानि होने से परेशान था। परिवार सड़क पर आ गया था इसलिए बर्दाश्त नहीं कर पाया और अवसाद का शिकार हो गया फिर एक दिन उसने आत्महत्या कर ली। 
दूसरा उदाहरण उन विधार्थियों का है जो परीक्षा मे असफल हो जाते हैं और अवसाद ग्रसित होकर आत्महत्या कर लेते हैं। 
महिलाओ को प्रताड़ित करना भी आत्महत्या को बढ़ावा देता है।

अवसाद अमीरी गरीबी देखकर नहीं होता । किसी को कभी भी, कहीं भी, किसी भी आयु मे अवसाद हो सकता है।
एक जवान युवक, युवती, वृद्ध पुरूष या महिला , यहाँ तक कि एक बच्चा भी अवसाद का शिकार हो सकता है।
चिकित्सकों के अनुसार जिन लोगों के परिवार मे अवसाद का इतिहास रहा हो वहाँ उस परिवार के लोगों को यह हो सकता है। निर्भर करता है स्थिति पर।

कुछ शोधों के मुताबिक अवसाद या डिप्रेशन सभी आयु वर्ग के लोगों को प्रभावित करता है। लेकिन किशोरों ,युवाओं , बीच की उम्र वाली महिलाओं , 60 वर्ष से अधिक के लोगों मे यह समस्या अधिक देखी गई है। डब्ल्यूएचओ ने हाल ही मे अपने एक शोध मे यह खुलासा किया है कि 39 करोड़ से अधिक लोग अवसाद के पीड़ित हैं। भारत मे हर चौथा किशोर अवसाद से ग्रस्त है। गरीबी, बेरोज़गारी, प्रेमिका से विवाह ना पाना सब आत्महत्या की ओर प्रेरित करते हैं।
अवसाद के कारण महिलाओं मे आत्महत्या का आकड़ा तीव्रता से आगे बढ़ा है।
महिलाओं मे अवसाद पुरुषों से अलग तरह के देखे गए हैं। अवसाद मे महिलाए कभी बहुत खुश रहती हैं तो कभी कभी छोटी सी बात पर गुस्सा हो जाती हैं, चिल्लाने लगती हैं और फिर अपने आप ही ठीक हो जाती हैं। परन्तु कुछ महिलाओं मे अवसाद बढ़ जाने पर आत्महत्या के केस देखे गए हैं।
सरकार ने भी अब अवसाद मे आत्महत्या का कदम उठाने वालो को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है।

शहर हो या गाँव अवसादी व्यक्ति हर स्थान पर मिलेगा।

डिप्रेशन से बचने के उपाय:- 
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अवसाद से कुछ निम्नलिखित नियमों का पालन करके बचा जा सकता है :- 

1. सबसे पहले तो नकारात्मक विचारों को मन मे ना आने दें।

2. प्यार और प्रेम ऐसे व्यक्ति से करें जो विश्वास का पात्र हो। 

3. अच्छी नींद लेने की आदत डालें। कम से कम आठ घंटे बेहद आवश्यक है।

4. बाहर टहलने जाएँ और अधिक से अधिक पेड़ो को देखें। 

5. योग करें (चाहे सुबह या शाम), मेडिटेशन करें।

6. अपने अच्छे मित्र बनाएं जो आपको अच्छी कम्पनी दे सकें।

7. सूरज के प्रकाश मे कुछ देर ज़रूर रहें ।

8. भोजन मे हेल्दी फूड खाएं।

9. जूस जो भी अच्छा लगता हैं पीयें।

10. मुहँ में चिविंगम या इलाइची चबाते रहें कहते हैं इससे भी आप तरोताज़ महसूस करेगें और मन मे शुद्ध विचार आयेगें।

11. अगर किसी लड़की को पसंद करते हैं तो उससे डायरेक्टर बात करें ।

12. किसी से एक तरफा प्यार ना करें।

13. उम्र रहते विवाह कर लें।

14. सप्ताह में एक दिन अपने व अपने परिवार के लिए ज़रूर समय निकालें।

15. जब भी छुट्टियाँ मिलें परिवार के साथ बाहर घूमने जाएँ।

आप स्वयं महसूस करेगे कि आप अवसाद से कोसो दूर हैं।


अवसाद को दूर करने मे परिवार की भूमिका:- 
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अवसाद के लिए चिकित्सको के अपने अपने विचार हैं। बहुत से कहते हैं कि अवसादी व्यक्ति को दवा से अधिक परिवार के प्रेम व साथ की ज़रूरत होती है। 
एंटी डिप्रेसेंट दवाएँ सबसे पहले 1950 में बनी थी। कुछ चार प्रकार के एंटी डिप्रेसेंट्स हैं जो मानव मस्तिष्क को अलग तरीकें से प्रभावित करते हैं।
परिवार का सहयोग दवाओ से अधिक कारगर साबित होता है।

निष्कर्ष:- 
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हम यही कह सकते हैं कि अवसाद से बचने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं प्रयत्न करने होगें।
उन बातों से दूर रहना होगा जो दुख और अवसाद उत्पन्न करती हैं।
परिवार मे ऐसे व्यक्ति पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है जो अवसाद से ग्रस्त है।
कहते हैं हर रोग का इलाज संभव है अगर सही ढंग से किया जाएं। मरीज़ को भी डाक्टर को पूर्ण रूप से सहयोग करना चाहिए।
प्रत्येक बीमारी का ईलाज हमारा परिवार ही है।
आपसी प्रेम, सहारे के हम बड़ी से समस्याओं का सामना भी कर सकते हैं।

धन्यवाद
शाहाना परवीन...✍️
पटियाला पंजाब

Sunday, August 2, 2020

रक्षाबन्धन बनाम कोरोना

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चीन के वुहान शहर से निकली वैश्विक महामारी कोरोना वायरस (covid-19) से आज सम्पूर्ण विश्व प्रभावित है।


कोरोना वायरस के विध्वंशकारी प्रभाव के कारण विश्व के कई देशों में वर्तमान में लॉक डाउन की प्रक्रिया जारी है। विश्व के तमाम राष्ट्र एवं उनकी खोज अनुसंधान संस्थाएँ इस वैश्विक महामारी से बचने हैतु वेक्सीन की खोज में लगी हुई  है।


भारत कोरोना वायरस से सर्वाधिक प्रभावित  राष्ट्रों में से एक है ।कोरोना वायरस वर्तमान में भारत मे किसी विषैले नाग के  भाँति फन फैलाए हुए है। वर्तमान में भारत मे कुल कोरोना से प्रभावित मरीजो लो संख्या लगभग 17.5 लाख हो चुकी है जो चिंताजनक है।

सम्पूर्ण भारत मे अनलॉक की प्रक्रिया  शुरू हो गई है। साथ ही बढ़ गया है कोरोना वायरस से सक्रमण का खतरा भी ,जहा एक तरफ कोरोना का कहर जारी है वहीं दूसरी तरफ  दूसरी तरफ आ  रहा भारत  के सर्वाधिक लोकप्रिय त्यौहारो में से एक रक्षाबंधन का त्यौहार जिसे राखी के नाम से भी जाना जाता है।


रक्षाबंधन भाई - बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है , अन्य शब्दो मे यदि इस त्यौहार को भाई - बहन का त्यौहार भी कहा जाए तो अनुचित नही होगा।
रक्षाबंधन के इस पावन पर्व पर बहन भाई को रक्षा सूत्र  बांध कर ताउम्र साथ निभाने तथा उसकी रक्षा करने का वचन मांगती है।भाई अपनी   बहन की रक्षा और ताउम्र साथ निभाने के वचन के साथ उसे अन्य रोचक उपहार देता है और बहन उसे सहर्ष स्वीकार करती है।
परिवार में मिठाइयों तथा भरपुर ख़ुशियों के साथ - साथ एक खुशनुमा माहौल होता है।


क्या इस बार कोरोना संकट के बीच   उसी हर्षोल्लास के साथ राखी मनाना सम्भव है...?
क्यो नही, बस बहन इस बार रक्षा सूत्र बांधने के साथ - साथ भाई को एक मास्क भी बांधे भाई  बहन की रक्षा के वचन के साथ - साथ  उपहार स्वरूप  सेनेटाइजर , n95 माक्स तथा इम्युनिटी बूस्टर देवे ।
भाई या बहन सफर के दौरान माक्स लगाए रखे।  बार - बार अपने हाथों को सेनेटाइज करें।
बाजारों में खरीददारी करते समय  समाजिक दूरी का ध्यान रखें।
घर पर बनी मिठाइयों का सेवन करें।


बहुत ज्यादा आवश्यकता होने पर ही घर से बाहर निकले , त्यौहार के उत्साह और भरपूर  उमंग के बीच कोरोना के संकट को न भूले।केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों की अनुपालना करें।
अपने अपने घरों में स्वस्थ्य ,रहे मस्त रहे तथा सुरक्षित रहे ।

*सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः*


दीपेश पालीवाल
  उदयपुर राज.

भाई बहन का ऐसा रिश्ता वो उसे परी लगती , वो उसे लगता फरिश्ता....

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रक्षा बंधन बहन भाई के स्नेह, अपनत्व एवं प्यार के धागों से जुड़ा त्योहार है, एक ऐसा पर्व जो घर-घर में भाई-बहन के रिश्तों में नवीन ऊर्जा एवं आपसी प्रगाढ़ता का संचार करता है। भाई-बहन का प्रेम बड़ा अनूठा और अद्वितीय माना गया है। बहनों में उमंग और उत्साह को संचरित करता है, वे अपने प्यारे भाइयों के हाथ में राखी बांधने को आतुर होती हैं। बेहद शालीन और सात्विक स्नेह संबंधों का यह पर्व सदियों पुराना है। रक्षा बंधन का गौरव अंतहीन पवित्र प्रेम की कहानी से जुड़ा है। भाई और बहन के रिश्ते को फौलाद-सी मजबूती देने वाला एवं सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता एवं एकसूत्रता का सांस्कृतिक पर्व है रक्षा बंधन।

*"वो उसको लगती है परी, वो उसको लगता है फरिश्ता!*
*भाई-बहन का कुछ ऐसा ही रिश्ता है!!"*

ऐसा माना जाता है कि राखी के रंगबिरंगे धागे भाई-बहन के प्यार के बन्धन को मजबूत करते हैं और सुख-दुख में साथ रहने का विश्वास दिलाते हैं। सगे भाई बहन के अतिरिक्त अनेक भावनात्मक रिश्ते भी इस पर्व से बँधे होते हैं जो धर्म, जाति और देश की सीमाओं से परे हैं। यही कारण है कि यह मानवीय सम्बन्धों की रक्षा के साथ-साथ राष्ट्रीयता को सुदृढ़ करने के संकल्पों का भी पर्व है। गुरु शिष्य को रक्षा सूत्र बाँधता है तो शिष्य गुरु को। भारत में प्राचीन गुरुकुल काल में जब विद्यार्थी अपनी शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षा सूत्र बाँधता था जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षा सूत्र बाँधता था कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अपने भावी जीवन में उसका समुचित ढंग से प्रयोग करे। इसी परम्परा के अनुरूप आज भी किसी धार्मिक विधि विधान से पूर्व पुरोहित यजमान को रक्षा सूत्र बाँधता है और यजमान पुरोहित को। इस प्रकार दोनों एक दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिये परस्पर एक दूसरे को अपने बन्धन में बाँधते हैं।

"रिश्ते कई है दुनिया में पर ये रिश्ता कुछ खास है।
बहना ने जो हाथों पे बांधा वो धागा नहीं विश्वास है।
दूरी हो चाहे कोसो की पर दिल के कभी न दूर है।
खुशी हो या हो गम हो कोई,उसे हो जाता अहसास है।
 रिश्ते कई है दुनिया में पर ये रिश्ता कुछ खास है।"

रक्षाबंधन पर्व को सादगी से मनाने की बजाय बहनें अपनी सज-धज की चिंता और भाई से राखी के बहाने कुछ मिलने के लालच में ज्यादा लगी रहती हैं। भाई भी उसकी रक्षा और संकट हरने की प्रतिज्ञा लेने की बजाय जेब हल्की कर इतिश्री समझ लेता है। अब राखी में भाई-बहन के प्यार का वह ज्वार नहीं दिखायी देता जो शायद कभी रहा होगा।इसलिए आज बहुत जरूरत है दायित्वों से बंधी राखी का सम्मान करने की। क्योंकि राखी का रिश्ता महज कच्चे धागों की परंपरा नहीं है। लेन-देन की परंपरा में प्यार का कोई मूल्य भी नहीं है। बल्कि जहां लेन-देन की परंपरा होती है वहां प्यार तो टिक ही नहीं सकता। ये कथाएं बताती हैं कि पहले खतरों के बीच फंसी बहन का साया जब भी भाई को पुकारता था, तो दुनिया की हर ताकत से लड़ कर भी भाई उसे सुरक्षा देने दौड़ पड़ता था और उसकी राखी का मान रखता था। आज भातृत्व की सीमाओें को बहन फिर चुनौती दे रही है, क्योंकि उसके उम्र का हर पड़ाव असुरक्षित है, उसकी इज्जत एवं अस्मिता को बार-बार नोचा जा रहा है। बौद्धिक प्रतिभा होते हुए भी उसे ऊंची शिक्षा से वंचित रखा जाता है, क्योंकि आखिर उसे घर ही तो संभालना है। नयी सभ्यता और नयी संस्कृति से अनजान रखा जाता है, ताकि वह भारतीय आदर्शों व सिद्धांतों से बगावत न कर बैठे। इन हालातों में उसकी योग्यता, अधिकार, चिंतन और जीवन का हर सपना कसमसाते रहते हैं। इसलिए राखी के इस परम पावन पर्व पर भाइयों को ईमानदारी से पुनः अपनी बहन ही नहीं बल्कि संपूर्ण नारी जगत की सुरक्षा और सम्मान करने की कसम लेने की अपेक्षा है। तभी राखी का यह पर्व सार्थक बन पड़ेगा और भाई-बहन का प्यार शाश्वत रह पायेगा।

*नाम-गोपाल कृष्ण पटेल*
*पता-दीनदयाल कॉलोनी*
*जांजगीर छत्तीसगढ़*

"भाई-बहन के प्रेम का बंधन है रक्षा बंधन"

2.8.20 1 Comments








            "कुछ खट्टी कुछ मिट्ठी" कुछ ऐसी ही होती है ना, भाई-बहन की जोड़ी? भाई-बहन की बात आते ही सबसे पहले रक्षाबंधन का त्यौहार ध्यान में आता है। रक्षाबंधन का त्यौहार आने को है, ऐसे में अभी से ही रक्षाबंधन की तैयारी जोरो से चल रही है। रक्षाबंधन का त्यौहार भाई-बहन का त्यौहार है। जो वर्ष में एक बार आता है, इन दिन सभी बहनें अपने भाई की कलाई पर राखियां बांधती है, बदले में भाई अपनी बहन को रक्षा के वचन के साथ-साथ प्यारे-प्यारे गिफ्ट्स भी देते हैं।

“वो बहन खुशकिस्मत होती है। जिसके सर पर भाई का हाथ होता है, हर मुश्किल में उसके साथ होता है. लड़ना झगड़ना और फिर प्यार से मानना तभी तो इस रिश्ते में इतना प्यार होता हैं।”

          आज के दौर में जब रिश्ते धुधंलाते जा रहे हैं, ऐसे में भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को मजबूत प्रेमपूर्ण आधार देता है रक्षाबंधन का त्योहार। इस पर्व का ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक और राष्ट्रीय महत्व है। इसे श्रावण पूर्णिमा के दिन उत्साह पूर्वक मनाया जाता है।
              रक्षाबंधन पर्व का ऐतिहासिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और राष्ट्रीय महत्व है। राखी या रक्षा बंधन श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह भाई एवं बहन के भावनात्मक संबंधों का प्रतीक पर्व है। इस दिन बहन भाई की कलाई पर रेशम का धागा बांधती है तथा उसके दीर्घायु जीवन एवं सुरक्षा की कामना करती है। बहन के इस स्नेह बंधन से बंधकर भाई उसकी रक्षा के लिए कृत संकल्प होता है। हालांकि रक्षाबंधन की व्यापकता इससे भी कहीं ज्यादा है। राखी बांधना सिर्फ भाई-बहन के बीच का कार्यकलाप नहीं रह गया। राखी देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, धर्म की रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है। विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ने इस पर्व पर बंग भंग के विरोध में जनजागरण किया था और इस पर्व को एकता और भाईचारे का प्रतीक बनाया था।भाई-बहन के स्नेह का मजबूत धागा: बहन जब तक राखी नहीं बांधती तब तक अन्न ग्रहण नहीं करती। राखी बांधकर तथा टीका करके भाई को फल, मिष्ठान देती है। बहनें इस दिन अपने भाइयों को शुद्ध आसन पर बिठाकर उसकी दाई कलाई में रक्षा की डोर बांधती हैं। उसके कच्चे धागे में जो मजबूती होती है वह लौह जंजीरों में भी नहीं पायी जाती हैं, क्योंकि यह भावनात्मक बंधन है। रक्षा के इस कच्चे धागे  के बंधन में इतनी शक्ति होती है। शायद यही शक्ति भाई को बहन की सुरक्षा के लिए कटिबद्ध होने को प्रेरित करती है।
             आधुनिक युग में रक्षाबंधन के बदलते मायने समय के चक्र अबोध गति से चलता रहा और अनेक परिवर्तन के दौर आए। बदलते समय के साथ रक्षाबंधन के स्वरूप में भी परिवर्तन होता जा रहा है। रेशम कच्चे धागे से शुरू होकर यह पर्व आज चांदी की राखियों में परिवर्तित हेा गया है। रक्षा बंधन की मूल आत्मा के रक्षा सूत्र से बंधकर भाई बहन की रक्षा के लिए कटिबद्ध होता था, आज लुप्त होती जा रही है। इस पर आधुनिकता का रंग चढ़ता जा रहा है।रक्षाबंधन जैसा पर्व हमें इहसास दिलाता  है कि हम उनकी रक्षा के लिए आगे आकर पहल करें । रक्षाबंधन के पर्व में परस्पर एक-दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना निहित है।

*"रेशम की डोरी हाथों में, और माथे पे लगा है चंदन।*
*सलामत रहे भाई हमारा, करते है प्रभु के आगे वंदन।।"*


*राखी पटेल*
*शिक्षक कॉलोनी*
*रायपुर छत्तीसगढ़*

Tuesday, July 28, 2020

असफलता क्यो...?

28.7.20 1 Comments






 जिस प्रकार किसी सिक्के के दो पहलू होते है चित ओर पट उसी प्रकार जीवन  सिक्के के दो महत्वपूर्ण पहलू है  सफलता और असफ़लता ।

जिस प्रकार  हम  खेल - खेलने के दौरान  सिक्का उछालते समय यह नही  सोचते कि हमे चित  प्राप्त होगा या पट  तो हम अपने जीवन मे किसी कार्य को करते समय सफलता या असफलता का तनाव क्यो ले, हम क्यो असफलता के दबाव में जिए , हम अपने कर्म पर विश्वास रखें ।


हमारे  लाख प्रयास करने कर बाद भी यदि  हमे अपने कर्म के अनुसार फल की प्रप्ति न हो तब भी तनाव या दबाव की आवश्यकता नही है।


समस्त भूमण्डल पर  ऐसे कई उदाहरण है जिन्हे शुरुआत में अपने कर्म  के अनुसार  फल नही मिला किंतु आज वे एक  सफल व्यक्तित्व के साथ साथ युवाओ के लिए एक आदर्श है। आज वे लोग दुनिया में  अपनी विशेष पहचान रखते है।

तो क्या करें ..?

असफलता के बाद शांति से बैठ जाए,  या तुरन्त उठ पुनः अपने कर्म पर लग  समग्र संसार के लिए एक उदाहरण  प्रस्तुत करें।


कई राज्यो में बोर्ड परीक्षा के परिणाम आ चुके है तो कई राज्यो में आने बाकी है , कई छात्र  बहुत अच्छे अंको के साथ  जिला मेरिट या राज्य मेरिट में उच्च स्थानों पर होंगे उन्हें बधाई।


लेकिन कई साथी ऐसे भी होंगे जिन्हें अपनी ईच्छानुसार  परिणाम नही प्राप्त हुआ । तो ऐसे साथियों को दबाव या तनाव में आने की बिल्कुल भी आवश्यकता नही है।जीवन में हर बार वो नही होता जो हम चाहते है लेकिन जो होता वो बेशक अच्छा न हो किंतु अच्छे के लिए ही होता है।


तो तुरंत उठे और पुनः अपने कर्म पर  लग  जाए अपने मित्र  परिवार ओर भाई बहन के लिए  एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत करें। सफलता या सफलता  जीवन का  नाम नही है यह जीवन का एक छोटा सा हिस्सा है । सफलता पर अहंकार न पालें ओर असफलता पर  तनाव न पालें।


ओर किसी भी अंक तालिका द्वारा आपकी योग्यता को नही दर्शाया जा सकता। आप  मे  सफ़लता की अपार सम्भावनाएं है बस शर्त है आप असफलता के भय और तनाव को जीवन पर प्रभावी न होने देवे।



दीपेश पालीवाल
 उदयपुर राज.

Monday, July 27, 2020

बहुमुखी प्रतिभा के धनी मुंशी प्रेमचंद

27.7.20 0 Comments


सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, साहित्यकार, नाटककार और विचारक के रूप में सर्वाधिक जाना पहचाना नाम प्रेमचंद जी का है।इन्हें हिंदी और उर्दू के लोकप्रिय साहित्यकारों में जाना जाता है। आपका जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस शहर से चार मील दूर लमही गांव में हुआ था।आपका बचपन बहुत ही आर्थिक तंगी में गुजरा लेकिन बचपन से ही साहित्यिक रुचि रखते थे। ग्रामीण जीवन से उन्हें खास लगाव था। जीवन की विकट परिस्थितियों में उन्होंने अपनी रचनाओं को बारीकी से उकेरा है।उनकी हर रचना  सामाजिक, पारिवारिक, राजनीतिक हर मुद्दों पर  यथार्थ को दर्शाती हुई नजर आती है। प्रेमचन्द जी के द्वारा लिखित रचना पढ़ने पर ऐसा आभास होता है जैसे वो हमारे सामने ही घटित हो रही हो। उनकी शैली साधारण होती थी और उनकी रचनाओं की सर्वाधिक यही खासियत थी।

 प्रेमचन्द की रचनाओं में विभिन्न विधा देखने को मिलती है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रेमचन्द जी ने स्मरण, लेख, कहानी, उपन्यास नाटक आदि सभी विधा में अपनी लेखनी हम सबके सामने रखी है।हालांकि शुरुआत उनकी कथाकार के रूप में  हुई। गोदान से उनकी अलग पहचान बनी ,गोदान उपन्यास की रचना से उन्हें उपन्यास सम्राट के रूप में जाना जाने लगा।उनके बड़े घर की बेटी, रंगभूमि, दो बैलों की कथा, बूढ़ी काकी आदि प्रमुख कहानी थी। हिंदी समाचार पत्र के साथ-साथ उन्होंने हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया था। मुंशी प्रेमचन्द की रचनाओं में सामाजिक, राजनीतिक और पारिवारिक सभी को अपनी रचनाओं में समेट कर अपनी रचनाओं को जीवंत कर देते थे।

 साहित्य जगत में एक जगमगाता सीतारा चमकता सूरज के रूप में जाना जाता है। प्रेमचन्द को हिंदी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में 191८ से 1936 के कॉल खंड को प्रेमचंद युग कहा जाता है। प्रेमचंद जी की कहानी कथा, लघु कथा आदि सभी ने पढ़ी है मैंने भी उनकी बहुत सारी कहानी पढ़ी है।हिंदी साहित्य में उनकी रचनाओं को पढ़ना जैसे सच्चाई से सामना करना होता था। प्रेमचंद जी की कहानी मंत्र" शायद आपने भी पढ़ी होगी। इंसानियत का पाठ पढ़ाती यह कहानी किसी के भी दिल को छू जाती है। आज भी बहुत से लोग ऐसे मिल जाते हैं जो अपना फर्ज भूल कर ऐसो आराम से जिंदगी जीते हैं। "मंत्र" कहानी इसी इंसानियत को जगाती कहानी है।एक डॉक्टर जो अपना फर्ज भूल कर किसी की जान बचाने के बजाय अपनी खुशी को देख रहा था। जिससे उसे आनंद मिले और इसी आनंद को प्राप्त करने में वह अपना फर्ज भूल जाता है।

 "मंत्र" कहानी डॉ चड्ढा की है जो अपने नियम पर चलते हैं और अपने समय पर मरीज देखते हैं। इसके अलावा वह अपने आनंद के लिए गोल्फ आदि में समय व्यतीत करते हैं।एक दिन एक आदमी आता है जो अपनी बीमार लड़के को देखने की अपील करता है।डॉक्टर  चड्ढा के गोल्फ खेलने का समय हो चुका था इसलिए उन्होंने उसे सुबह आने को कहा और उसके बेटे को देखने से इंकार कर दिया। वह आदमी बहुत परेशान था क्योंकि इसके बीमार बेटे को डॉक्टर चड्ढा ने सुबह बुलाया और वह उसका इकलौता बेटा था बहुत परेशान हुआ वापस लौट गया क्योंकि हाथ पैर जोड़ने के बाद भी डॉक्टर चड्ढा ने सुबह ही आने को कहा और गोल्फ खेलने निकल पड़े। इसके बाद उस आदमी के बच्चे की मौत हो जाती है। डॉक्टर चड्ढा का अपना फर्ज भूलकर गोल्फ खेलने चले जाना इंसानियत को शर्मसार करती यह घटना रही और कहीं ना कहीं किसी के सच्चाई को दर्शाती भी है। बेटे की मृत्यु के बाद वह आदमी बहुत दुखी रहता था इकलौते बेटे के खो जाने का गम उसे सालता रहता लेकिन कहते हैं ना समय का फेर घूमता है और वापस वही लेकर आता है। इसी तरह समय भी करवट बदलता है बहुत सालों बाद डॉक्टर चड्ढा से सामना होता है। डॉक्टर चड्ढा एक बेटा और एक बेटी थे जो कॉलेज में पढ़ते थे। 1 दिन डॉक्टर चड्ढा के बेटे को सांप ने काट लिया जो सांप पालने का शौकीन था और मना करने के बाद भी सांपों से खेलता था। डॉक्टर चड्ढा के रोकने के बाद भी उसने सांपों को पाल रखा था एक दिन उसी सांप ने उनके बेटे को काट लिया सारा इलाज करने के बाद भी वो ठीक नहीं हुआ तो किसी ने झाड़ने फूकने वाले को बुलाया सभी आकर चले गए लेकिन उनका बेटा ठीक नहीं हुआ तब किसी ने उसे उसी आदमी के बारे में बताया जो कभी डॉक्टर चड्ढा के पास अपने इकलौते बेटे को लेकर आया था और वह झाड़ फूंक करता था। वह डॉक्टर चड्ढा आदमी को बुलाने कहता है लेकिन जैसे ही उस आदमी को यह पता चलता है कि डॉक्टर चड्ढा के बेटे को सांप ने काटा है उसने जाने से इनकार कर दिया लेकिन इंसानियत जाग जाती है और उस आदमी के मन में उथल-पुथल उठकर डॉक्टर चड्ढा के घर की ओर चल पड़ता है। आंधी, तूफान, ठंडी में भी वह डॉक्टर चड्ढा के घर चल पड़ता है और उसके बेटे की जान बचाता है और चुपचाप वहां से निकल जाता है। इंसानियत की जीत होती है इंसानियत को दर्शाती यह प्रेमचंद की कहानी बहुत ही पसंदीदा कहानी है।

प्रेमचन्द जी की कथा अनुसार बहुत सारी बातें हैं जो हमें हमेशा उनकी कथाओं में देखने को मिलती हैं और हमेशा कुछ अनमोल वचन सीखने को भी उनकी हर रचनाओं में मिलते हैं। सामाजिक, ग्रामीण हर जगह सटीक बैठती उनकी रचनाएं रहती हैं। उनके कुछ अनमोल शब्द आपके सामने हैं "खतरे से हमारी चेतना अंतर्मुखी हो जाती है" और यह बिल्कुल सही कहना है प्रेमचंद जी का। "आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन घमंड होता है जो हमेशा शक्की प्रवृत्ति का होता है"। "प्रेम और सत्कार जहां मिले वही घर है"। "जवानी जोश है।बल,साहस दया है"। प्रेमचंद जी के अनमोल वचन को बेखूबी हम आम जनजीवन में देखते और सुनते हैं। यथार्थ को दर्शाती उनकी हर रचना अपने आप में अनुपम संग्रह है। बहुआयामी प्रतिभा के धनी प्रेमचंद जी के बारे में कहना किसी के लिए भी नामुमकिन है क्योंकि उनके बारे में कुछ भी कहना "सूरज को दीपक" दिखाना होगा। जितना ऊंचा नाम उतने ही जमीन से जुड़े व्यक्ति थे। स्वाभिमान कूट-कूट कर उनमें भरा था।
 साहित्य सृजन और कमाल की लेखनी बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रेमचंद जी को शत शत नमन।


निक्की शर्मा रश्मि
मुम्बई, मीरा रोड