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Saturday, August 1, 2020

यारी

1.8.20 0 Comments



गीत
तेरी यारी से मिलकर के दिल ने कुछ राज उछाले हैं।
चल बात उन्हीं की करते हैं, जो मन के नश्वर छाले हैं।

1
 तुझसे मिलकर के यार मेरे जीवन की उदासी मिट जाती।
भूलूं मैं इस दुनिया का ग़म , वह पीर की बदरी छंट जाती।
तू मिलता है जब मुझ से तो, क्या बहते ख़ुशी के नाले हैं।
चल बात उन्हीं की करते हैं, जो मन के नश्वर छाले हैं।

2
तू सुकूं है मेरे जीवन का, तुझसे ही बहारें हैं प्यारी।
करुं शुक्र खुदा का उसने घड़ी, सब रिश्तों से ऊपर यारी।
तेरी बातों से यार मेरे, अंधियारों में उजियाले हैं।
चल बात उन्हीं की करते हैं, जो मन के नश्वर छाले हैं।

3
अनमोल हमारा रिश्ता है, है पाक नजर और पाक डगर।
 कोई होड़ नहीं है मंजिल की, दिखती नहीं चारों ओर फिकर।
बेवजह हंसे हम जोरों से, और वक्त कि सीमा टालें हैं।
 चल बात उसी की करते हैं, जो मन के नश्वर छाले हैं।
4
बेवफा कभी जब हुआ समय, तुझसे ही सहारा मिल पाता ।
मैं अड़ा रहूं तूफानों में, तेरे दम से, ऐसा है नाता।
क्यों नाज करूं ना खुद पर मैं, तेरी यारी संभाले हैं।
चल बात उसी की करते हैं, जो मन के नश्वर छाले हैं चल बात उसी की करते हैं,.....

✍️ ज्योति शर्मा

Monday, July 27, 2020

हो दीवानी कृष्ण के दरबार में, झूमती गाती फिरूँ हर बार मैं।

27.7.20 0 Comments


हो दीवानी कृष्ण के दरबार में,
झूमती गाती फिरूँ हर बार मैं।
उसकी मर्ज़ी है वो नैया तार दे,
छोड़ दे चाहे यूं ही मंझधार में।

मैं हूँ मीरा बावरी कान्हा मेरा,
  रह गया बाकी ठिकाना ना मेरा ।
पूछे कोई ग़र पता मालूम हो,
पाऊं कान्हा के चरण पखार में ।

तू ही दर्पण, अक्स तू ही आत्मा,
मेरा मुझमें कुछ नहीं परमात्मा।
मौन हूँ, वाचाल हूँ तेरे लिये।
लेना देना कुछ नहीं संसार में।

एक तुझको साधा है सब छोड़ कर,
डर बिखरने का नहीं किसी मोड़ पर।
रिश्ते - नाते भूल कर तेरी गली,
आ गई बहती, प्रीत बयार में।
✍️ ज्योति शर्मा

हे प्रिये मनमीत मेरे....

27.7.20 0 Comments


हे प्रिये मनमीत मेरे.....

हे प्रिये मनमीत मेरे इन  लबों  के  गीत हो तुम,
देह झंकृत है वीणा सी मेरा सुर संगीत हो तुम।

चाहता हूँ  दिल से  कितना  मैं  तुझें कैसे  बताऊँ,
देखकर  बादल  को धरती झूमें इतना झूम जाऊँ।
आसमाँ की छत पे जाकर  इक तराना गुनगुनाऊँ,
तुम  मेरी  बाहों  में आओ  मैं तेरी  बाहों में आऊँ।

हे  प्रिये  इस  प्रेम  में  तो  मेरी  पहली  जीत  हो  तुम,
मौनवाचन सा ये दिल है पहले प्यार की प्रीत हो तुम।


छंद  बनकर  तुम  तो आओ अलंकार सा सजाऊँ,
कल्पनाओं से परे भी कुछ नया सा लिख मैं पाऊँ।
बन  जाओ  मेरी  कविता  कंठ  में तुमको बसाऊँ,
बनके राधा  का  कन्हैया  सा  तेरा गुणगान गाऊँ।

हे प्रिये कन्हैया सा मैं राधा प्रिय नवनीत हो तुम,
जो  निभाये  प्रेम को बन जाए ऐसी रीत हो तुम।

दिल के कोरे कागजो पर तेरा ही एक चित्र सा है,
फ़िज़ाओं में मदहोशी सा  बिखरा कोई इत्र सा है।
बिन दिखे ही पढ़ लिया जो ऐसा  कोई पत्र सा है,
कर दे झंकृत  तन ये सारा  तू तो  ऐसा मंत्र सा है।

हे प्रिये निश्छल सी होकर कह दो मेरी मीत हो तुम,
भावनाओं के सुमन की ग़ज़ल हर एक गीत हो तुम।

दिल  के झूले में  झुलोगी  पास  मेरे  जब  रहोगी,
तुम हो  मेरे  मैं  तुम्हारी  पास आकर तब कहोगी।
ये  ऋतुएँ  झूम  उठेंगी  मेहंदी  हाथों  पर  रचोगी,
छोड़कर बाबुल का अंगना साथ मेरे जब चलोगी।

हे प्रिये तुम साथ दे दो किससे अब भयभीत हो तुम,
इस जगत को अब बता दो मुझसे ही प्रतीत हो तुम।

हे प्रिये मनमीत मेरे इन लबों  के  गीत हो  तुम,
देह झंकृत है वीणा सी मेरा सुर संगीत हो तुम।

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✍        हरीश चंद्र सिंह गनोड़ा
             M.N.--9828129049