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Monday, August 3, 2020

रक्षाबंधन

3.8.20 0 Comments







श्रावण मास में आता है रक्षा बंधन का त्यौहार,
खुशियाँ हज़ारो लाता है रक्षा बंधन का त्यौहार।

बहने खिलखिलाकर हसती हैं रंग बिरंगे वस्त्र पहनती हैं,
जब परिवारों मे आता है रक्षा बंधन का त्यौहार।

ऐसे तो त्यौहार अनेक हमारी संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं,
त्यौहारों में सबसे अनमोल रक्षा बंधन का त्यौहार।

भाईयों  की कलाई पर जब बहने राखी बांधती है,
अद्भुत दृश्य होता है जब आता है रक्षा बंधन का त्यौहार।

जिनके नहीं बहने होती उन भाईयों से पूछो मन की दशा,
बहनो के लिए रोते हैं जिस दिन होता है रक्षा बंधन का त्यौहार।

मधुर प्रेम, नोंक झोंक मे गुज़र जाते यूँ ही साल,
बहुत याद आती बहने जब चली जाती अपनी ससुराल।

भाई बहन का प्यार सदा अमर था और रहेगा अमर सदा,
नहीं भूल सकता कोई स्नेह बंधन, रक्षा बंधन का त्यौहार।

शाहाना परवीन...✍️
पटियाला पंजाब

Sunday, August 2, 2020

रक्षाबंधन

2.8.20 0 Comments





सज - संवर कर घर आई बहना।
भाई है अपनी बहना का गहना।।

थाली में अक्षत व रोली - मोली सजाई।
 बहिन के लिए भाई ने कलाई बढ़ाई।।

भाई की कलाई पर बांधा रेशमी धागा।
भाई ने किया प्यारी बहिन से वादा।।

बहिन ने भाई के माथे पर तिलक लगाया।
भाई बहिन ने आपस में मुंह मीठा कराया।।

बड़े भाई ने अपनी बहिन को नेक दिया ।
छोटे भाई ने अपनी बहिन से नेक लिया।।

भाई - बहिन का रिश्ता है बड़ा निराला।
"रक्षाबंधन" का त्योहार है सबसे प्यारा।।

✍🏻रविना राठौड़✍🏻
गुड़ा मोकम सिंह,
पाली (राजस्थान)

रक्षाबंधन

2.8.20 0 Comments







 रक्षाबंधन जब है आता
खुशियां संग अपार है लाता
 बहनें भी  फूली नहीं समाती
जब भैया उसके घर है आता
रक्षाबंधन जब है आता
खुशियां संग अपार है लाता

 लगाकर कुमकुम खिलाती मिठाई
बहनें थालियाँ खूब सजाती
रेशमी धागा कलाई पे बांधा
रक्षा का लेती फिर वादा

 रेशमी धागे की लाज बचाना
अपनी बहना को भूल न जाना
देखा प्यार जो भाई-बहन का
रोम-रोम सबका खिल उठता
रक्षाबंधन जब है आता
खुशियां संग अपार है लाता

कैसा पावन पर्व राखी का
जिस में समाया प्यार अनोखा
पर्व राखी का वर्ष में आता
संग हज़ारों ख़ुशियाँ लाता
रक्षाबंधन जब है आता
खुशियां संग अपार है लाता

सुनीता गर्ग

अनुरागी मन

2.8.20 0 Comments






अपलक नैन निहार रहे है आहट सी इक मन मे,
इक सिहरन सी मचल उठी है इस आह्लादित तन में,
तार झंकृत उर के गूंजे सरगम सी जीवन मे,
ज्यों ही महके याद पिया की इस अनुरागी मन में।
कमलनयन में स्वप्न सजीले दिखलाये साजन ने,
स्मृतियों में डोल रहे ज्यूँ मृग डोले उपवन में,
मन देहरी के तोरण की झंकार बजी आंगन में,
ज्यों ही महके याद पिया की इस अनुरागी मन मे।
चंचल चपल विलोकित नैना ज्यूँ बिजली गगन में,
अधर छुपाये हिय की बातें ज्यूँ अश्रु अखियन में,
झूम रहा मन पींगे भरता आशा के मधुबन में,
ज्यों ही महकी याद पिया की इस अनुरागी मन मे।
**************************
नाम-श्रीमती सोनाली जोशी
       प्राध्यापक, हिंदी
रा.उ.मा.वि. मसोटिया,बांसवाड़ा।

Saturday, August 1, 2020

रक्षाबंधन

1.8.20 0 Comments






रक्षाबन्धन     का      त्यौहार,
भाई - बहन का अनुपम प्यार।

बिजली चमक उठी खुशियों से
रिमझिम - रिमझिम  वर्षा आई,
वसुन्धरा  ने   जब  बादल   को
सतरंगी       राखी      पहनाई।

प्रीत  के   धागो   के  बंधन  में
नेह   का   उमड़   रहा   संसार,
रक्षाबन्धन      का      त्यौहार,
भाई - बहन  का अनुपम प्यार।

सावन   में   बारिश   की   बूँदें
मधुरिम   संगीत    सुनाती   है,
मेघों   की  मृदु  ढोल  ताप पर
वसुधा   हँसती  -  गाती      है।

हरे- भरे   वन, बाग, खेत  सब
झूम         रहे        घर  -  बार,
रक्षाबन्धन       का      त्यौहार,
भाई - बहन  का  अनुपम प्यार।

"भावुक" मोर, पपीहा, कोयल
नाचें ,    गाएं      गीत   मल्हार,
प्रेम  भरा   हर   पल  ले  आये
सुखद  सुगन्धित मलय बयार।

स्नेह  की डोर से बँधा हुआ यह
रिश्तों     का    पावन   उपहार,
रक्षाबन्धन       का       त्यौहार,
भाई - बहन  का  अनुपम  प्यार...

डॉ.अवधेश तिवारी "भावुक"
मयूर विहार फेज-3
दिल्ली-110096


रक्षाबंधन

1.8.20 0 Comments






कितना पावन है रक्षा बंधन का त्योहार
एक सूत्र से बंधा , भाई-बहन का प्यार

ससुराल बैठी हर बहन पीहर को तरसे
कब आए संदेशा, आस नैनों में भर के

सुंदर रेशमी धागों में प्यार बसाती वह
भाई के लिए हर पल दुआ माँगती वह

न चाहती उपहार,माँगती भाई का प्यार
न पड़े कभी उन के पवित्र रिश्ते में दरार

भाई भी बहन को मिलने को तरसता है
सदा रक्षा करने का वह वादा करता है

पगड़ी सिर बांध बाप का फ़र्ज़ निभाता
न हो माँ तो बहन पर ममता है लुटाता

धागा बेशक कच्चा पर प्यार है पक्का
स्नेह और विश्वास का रिश्ता ये सच्चा

माँगे दोनो ख़ुशहाली एक दूजे के लिए
माँ-बाप के संस्कारों का सम्मान किए

स्वरचित
आभा मुकेश साहनी

राखी का त्यौहार

1.8.20 0 Comments






कभी चिट्ठियां घर को आती
अक्षरों को आंसू से फैला जाती
फैले अक्षरों की पहचान
ससुराल के निर्वहन को बतलाती।

पिता की अनुपस्थिति में
भाई लाने का फर्ज निभाता
तो कभी ना आने पर
वही राखी बंधवाता।

बिदा लेते समय
बहना की आँखे
आंसू से भर जाती
भाई की आँखें
बया नही करती बिदाई।

सिसकियों के स्वर को
वो हार्न में दबा जाता
राखी का त्यौहार पर
भाई बहन के घर जाता।

रेशम की डोर में होती ताकत
संवेदनाओं को बांध कर
बहन के सुख के साथ
रक्षा के सपने संजो जाता।

संजय वर्मा'दृष्टि'
125,शहीद भगतसिंह मार्ग
मनावर(धार)मप्र
9893070756

आया राखी का त्यौहार...

1.8.20 0 Comments





राखी का त्यौहार आया ,
संग में खुशियां हजार लाया ।
भाई-बहन का सच्चा प्यार ,
प्रेम के धागे में पूरा समाया ।।

बहन अपने पीहर आयी , 
घर में फिर से रौनक छायी ।
बाबुल के बगिया की चिड़िया ,
फिर से घर में बहार लायी ।।

सबके चेहरे खिले-खिले ,
हंस-हंस कर सब बात़े करते ।
सब बचपन को याद करके ,
फिर से जीने की आस करते ।।

माथे पर तिलक लगा कर ,
कलाई पर राखी बांधती है ।
जीवन भर प्यार के संग-संग ,
बहन रक्षा का वचन मांगती है ।।

कहती है मेरे प्यारे भैया ,
तुम राखी की लाज रख देना ।
मां- बाप की सेवा करना ,
और उनको दुःख तुम मत देना ।।

शराब का सेवन मत करना ,
गाड़ी हेलमेट पहन चलाना ।
घर पर राह तकते बीवी-बच्चे ,
उन पर खूब प्यार लुटाना ।।

बहन तो इतना ही चाहती  ,
अपने घर का मान बढाती ।
बहन बड़े प्यार से भाई की ,
कलाई पर राखी सजाती ।।

बहन बेटी जिस घर में होती ,
उस घर में सदा खुशियां आती ।
भ्रूण हत्या क्यों करतें हो ,
बेटी ही सब रिश्ते निभाती  ।।

बेटियां नहीं होगी घर में तो  ,
तुम्हें राखी फिर बाँधेगी कौन ।
ये त्यौहार भी मिट जाएगा  ,
सिर्फ यादें ही रहेगी मौन ।।

जिस बहन के भाई नहीं  है ,
ये भाई "जसवंत" है तैयार ।
बांधकर रक्षा का बन्धन ,
मनाओ सब राखी का त्यौहार ।।
मनाओ सब राखी का त्यौहार ।।

कवि जसवंत लाल खटीक
रतना का गुड़ा , देवगढ़
राजसमंद
8505053291

Thursday, July 30, 2020

खुल गई है मधुशाला

30.7.20 3 Comments





खुल गई है मधुशाला

मंदिर मस्जिद बंद रहेंगे!
शाला में लटका है ताला!!
चहूँओर जनसैलाब उमड़ा!
भर भर पेटी लाये हाला !!
खुल गई जब मधुशाला!

कंधे से कंधा मिला खडे हैं!
मदिरालय के दर पे पडे हैं!!
तालाबंदी रख दी ताक पर !
प्यासे कंठ को मिला प्याला !!
खुल गई जब मधुशाला!

सरकारी धन बरस रहा है!
मदिरालय भर कर दे रहा है !!
तालाबंदी को ठेंगा दिखाया !
रोजगार को लगा है ताला!!
खुल गई जब मधुशाला !

भर पेट नसीब नहीं है रोटी !
पत्नी की आँखे सूजे मोटी !!
जाम छलकाये रेहड़ी वाला!
कमर लगा पेट सूखा काला!!
खुल गई जब मधुशाला !

नशा मुक्ति का जतन न कोई!
नशेबाजी की आदत बढाईं !!
राशन पानी नसीब नहीं है !
जनता के हाथों में हाला !!
खुल गई जब मधुशाला!

जनता रोती और कलपती!
सब सोचे ये तालाबंदी कैसी !!
कोरोना मुक्त हो भारत कैसे !
कानून करें कर्म जब काला !
 खुल गई जब मधुशाला!!

विश्व महामारी से जूझ रहा है !
सिर पे मौत का संकट खड़ा है !!
बिल्ली देख नयना ज्यों मूंदें!
कपोत बने अफसर सब बैठे !
कोरोना बने न अध्याय काला !!
खुल गई जब मधुशाला !

✍ सीमा गर्ग मंजरी
 मेरी स्वरचित रचना
 मेरठ

अधूरी ममता

30.7.20 0 Comments



अरे बेरहमो,
कैसे फेंक देते हो तुम।
इतने प्यारे प्यारे,
नन्हे मासूम।
जिनके होती नहीं संतान,
उनसे पूछो क्या है इनका मान।
ऐसे कर्मो पर आती,
मानवता को शर्म है।
जाने एक मां भी,
कैसी बेरहम है।
इनमें भी धड़कन है,
इनमें भी सांस हैं।
दरिंदों ने तो फेंक दिया,
पर जीने की इनमे आस है।
प्रभु !तू इनके साथ इँसाफ करता,
इन्हें देकर किसी बेऔलाद की गोद भरता।
एक मां की झोली ममता से भर जाती,
और इनकी किस्मत में भी खुशियां आ जाती।
हम खुद इनके लिए हर पल तरसते हैं ,
इस ममता को पाने के लिए दर दर भटकते हैं।
(स्वरचित)
एकता शर्मा

Tuesday, July 28, 2020

"यही तो है मानवता"

28.7.20 1 Comments






शीर्षक-" यही तो है मानवता"

जीवन के पथ पर चलना है-
गम खुशियों में  ही पलना है,
कंटक हटा-हटाकर ही तो-
सुरभित फूलों को चुनना है.
जीवन के पथ....

परिवार में हिल-मिल रहना-
सदा बड़ों का आदर करना,
छोटों को नेह न देना भूलो-
संस्कार का ही दम भरना.
जीवन के पथ....

भेदभाव का नाम न लेना-
परहित, प्रेम परस्पर करना,
भू,जल,गगन,अग्नि,वायु से-
निर्मित तन पर गुमां न करना.
जीवन के पथ...

नर-नारी पूरक सृष्टि के-
शिव-शक्ति के अनुपम रूप,
पूत,सुता से ही मानवता-
दिखे जगत में  रे अपरूप.
जीवन के पथ...

खुद जियो, सबको जीने दो-
ध्येय वाक्य यह संग रखो,
सच्ची मानवता अपनाकर-
भू पर जीने का मजा चखो.
जीवन के पथ...
   
रचयिता- डा.अंजु लता सिंह
नई दिल्ली

Monday, July 27, 2020

किताबे बोल देगी तो क्या होगा...?

27.7.20 1 Comments


जीवन के अनसुलझे से रहस्य सारे खोल देंगी तो क्या होगा,
 सोचो अगर ताक में पड़ी किताबे बोल देंगी तो क्या होगा..?


झटपट से सब बोलेगी, सच झूठ को तोलेगी ,
बात - बात पर टोकेगी ,करने से गलत वो रोकेगी।
तुम्हारे हर झूठ को  सत्य मैं अपने घोल देंगी तो क्या होगा...?

सोचो अगर कभी ताक ....


दर्पण तुम्हे वो दिखा देगी, पाठ संस्कृति का वो सीखा देगी ,
किस राह में है अपने , कहा छिपे पराए है सब बात तुम्हे बतलादेगी।
वो तुम्हे खुद में रचित किरदारों से अधिक मोल देंगी तो क्या होगा...?

सोच अगर कभी ताक...

बात - बात पर टोक देंगी , करने  से  नशा तुम्हे रोक देंगी,
जब भी कभी भटकोगे  तुम राहो से बातें वो ज्ञान की कह देंगी।
तुम्हारी हर लापरवाही पर राज़ तुम्हारा खोल देंगी तो क्या होगा..?

सोचो अगर कभी ताक...

दीपेश पालीवाल
 उदयपुर राज.