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Monday, July 27, 2020

हे प्रिये मनमीत मेरे....



हे प्रिये मनमीत मेरे.....

हे प्रिये मनमीत मेरे इन  लबों  के  गीत हो तुम,
देह झंकृत है वीणा सी मेरा सुर संगीत हो तुम।

चाहता हूँ  दिल से  कितना  मैं  तुझें कैसे  बताऊँ,
देखकर  बादल  को धरती झूमें इतना झूम जाऊँ।
आसमाँ की छत पे जाकर  इक तराना गुनगुनाऊँ,
तुम  मेरी  बाहों  में आओ  मैं तेरी  बाहों में आऊँ।

हे  प्रिये  इस  प्रेम  में  तो  मेरी  पहली  जीत  हो  तुम,
मौनवाचन सा ये दिल है पहले प्यार की प्रीत हो तुम।


छंद  बनकर  तुम  तो आओ अलंकार सा सजाऊँ,
कल्पनाओं से परे भी कुछ नया सा लिख मैं पाऊँ।
बन  जाओ  मेरी  कविता  कंठ  में तुमको बसाऊँ,
बनके राधा  का  कन्हैया  सा  तेरा गुणगान गाऊँ।

हे प्रिये कन्हैया सा मैं राधा प्रिय नवनीत हो तुम,
जो  निभाये  प्रेम को बन जाए ऐसी रीत हो तुम।

दिल के कोरे कागजो पर तेरा ही एक चित्र सा है,
फ़िज़ाओं में मदहोशी सा  बिखरा कोई इत्र सा है।
बिन दिखे ही पढ़ लिया जो ऐसा  कोई पत्र सा है,
कर दे झंकृत  तन ये सारा  तू तो  ऐसा मंत्र सा है।

हे प्रिये निश्छल सी होकर कह दो मेरी मीत हो तुम,
भावनाओं के सुमन की ग़ज़ल हर एक गीत हो तुम।

दिल  के झूले में  झुलोगी  पास  मेरे  जब  रहोगी,
तुम हो  मेरे  मैं  तुम्हारी  पास आकर तब कहोगी।
ये  ऋतुएँ  झूम  उठेंगी  मेहंदी  हाथों  पर  रचोगी,
छोड़कर बाबुल का अंगना साथ मेरे जब चलोगी।

हे प्रिये तुम साथ दे दो किससे अब भयभीत हो तुम,
इस जगत को अब बता दो मुझसे ही प्रतीत हो तुम।

हे प्रिये मनमीत मेरे इन लबों  के  गीत हो  तुम,
देह झंकृत है वीणा सी मेरा सुर संगीत हो तुम।

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✍        हरीश चंद्र सिंह गनोड़ा
             M.N.--9828129049

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