जीवन के अनसुलझे से रहस्य सारे खोल देंगी तो क्या होगा,
सोचो अगर ताक में पड़ी किताबे बोल देंगी तो क्या होगा..?
झटपट से सब बोलेगी, सच झूठ को तोलेगी ,
बात - बात पर टोकेगी ,करने से गलत वो रोकेगी।
तुम्हारे हर झूठ को सत्य मैं अपने घोल देंगी तो क्या होगा...?
सोचो अगर कभी ताक ....
दर्पण तुम्हे वो दिखा देगी, पाठ संस्कृति का वो सीखा देगी ,
किस राह में है अपने , कहा छिपे पराए है सब बात तुम्हे बतलादेगी।
वो तुम्हे खुद में रचित किरदारों से अधिक मोल देंगी तो क्या होगा...?
सोच अगर कभी ताक...
बात - बात पर टोक देंगी , करने से नशा तुम्हे रोक देंगी,
जब भी कभी भटकोगे तुम राहो से बातें वो ज्ञान की कह देंगी।
तुम्हारी हर लापरवाही पर राज़ तुम्हारा खोल देंगी तो क्या होगा..?
सोचो अगर कभी ताक...
दीपेश पालीवाल
उदयपुर राज.
ये मेरी सबसे पसंदीदा कविता है। बहुत शानदार Harry
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