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Monday, July 27, 2020

बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद



ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़कर सनाया जैसे ही मुंबई लौटी, उसने एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर लिया ।क्योंकि उसके माता पिता चाहते थे कि वह पढ़ाई पूरी करके अपने देश भारत में ही रहे।
 वहीं साथ में काम करते -करते उसे सुजॉय से प्यार हो गया। सुजॉय देखने में गोरा, चिट्टा, सुंदर था ।उसका यह रूप किसी को भी अपनी और आकर्षित कर लेने के सारे गुणों से युक्त था।
 जल्द ही दोनों के परिवार वालों की रजामंदी से उन्हें परिणय सूत्र में बांध दिया गया। सुजॉय के दादा- दादी गांव में रहते थे। उन्होंने नई बहू के गृह प्रवेश की तैयारी गांव के घर में ही कर रखी थी। गांव की सड़कें टूटी- फूटी थीं, जिसके कारण सनाया को बहुत दिक्कत हो रही थी ।हो भी क्यों ना, विदेश में इतने साल रहकर वहां की आदत अभी छूटी नहीं थी।
 दादा -दादी ने बड़े लाड़ से नई बहू का गृह प्रवेश, बड़े जोर शोर से, पूरे रीति- रिवाज के साथ कराया। हालांकि सनाया इस सब के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रखती थी ,परंतु जैसे-जैसे दादी बोलती जा रही थीं, वह करती जा रही थी ,बिना कोई प्रश्न किए।
फिर दोपहर का भोजन लगाया गया ।दादी ने बिल्कुल गांव का पारंपरिक भोजन तैयार किया हुआ था। सभी की थालियां परोसी गईं। शनाया यह सब गौर से देखे जा रही थी ,क्योंकि इस प्रकार का भोजन पहली बार देख रही थी ।जिसमें काली-काली सी रोटी, मिट्टी के ढेले जैसा पीला छोटा सा कुछ, दाल ,भात ,दही, मिठाई वगैरह- वगैरह।
बाकी सब तो ठीक था किंतु रोटी और मिट्टी के ढेले ने उसके मन में कौतूहल पैदा कर दिया था। ना चाहते हुए भी उसने दादी से पूछा -दादी जी यह सीमेंट जैसी रोटी और मिट्टी जैसा ढेला थाली में क्यों दिया गया है?
पहले तो दादी की भौंहें यह सुनते ही तन गईं, इस लड़की को यह भी नहीं पता ।यह रोटी किसकी है और तो और जिसको पीली मिट्टी का ढेला बोल रही है वह असल में है क्या?
 फिर कुछ देर चुप रह कर बोलीं -बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद यह सुन शनाया कुछ समझी ही नहीं।दादी की कहावत सुन बाकी सभी मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।सनाया समझी ही नहीं, कि दादी क्या कहना चाह रही हैं ।
क्योंकि वह हिंदी की पढ़ाई से सदा कोसों दूर रही थी। फिर उसने दादी से प्रार्थना की, कि वे अपनी बात का अर्थ उसे समझाएं।
तब दादी मुस्कुराई और बोली- अरे पगली ,जिसे तुम सीमेंट की रोटी बोल रही हो वह है बाजरे की रोटी और वह मिट्टी का ढेला नहीं, शुद्ध गुड़ है। यह सुन सुजॉय खूब ठहाके लगाकर हंसने लगा ,किंतु सनाया भी कुछ सकुचाई सी मुस्कुराने लगी और बोली सॉरी दादी मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था।
 दादी जोर से हंस दी। फिर सनाया ने उस कहावत का अर्थ भी पूछ लिया ।तब दादी बोली -उस कहावत में बंदर तुम हो और अदरक है बाजरे की रोटी और गुड़। समझी हमारी अंग्रेजी दुल्हन।

पारुल हर्ष बंसल

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