हो दीवानी कृष्ण के दरबार में,
झूमती गाती फिरूँ हर बार मैं।
उसकी मर्ज़ी है वो नैया तार दे,
छोड़ दे चाहे यूं ही मंझधार में।
मैं हूँ मीरा बावरी कान्हा मेरा,
रह गया बाकी ठिकाना ना मेरा ।
पूछे कोई ग़र पता मालूम हो,
पाऊं कान्हा के चरण पखार में ।
तू ही दर्पण, अक्स तू ही आत्मा,
मेरा मुझमें कुछ नहीं परमात्मा।
मौन हूँ, वाचाल हूँ तेरे लिये।
लेना देना कुछ नहीं संसार में।
एक तुझको साधा है सब छोड़ कर,
डर बिखरने का नहीं किसी मोड़ पर।
रिश्ते - नाते भूल कर तेरी गली,
आ गई बहती, प्रीत बयार में।
✍️ ज्योति शर्मा
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