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Thursday, July 30, 2020

अधूरी ममता




अरे बेरहमो,
कैसे फेंक देते हो तुम।
इतने प्यारे प्यारे,
नन्हे मासूम।
जिनके होती नहीं संतान,
उनसे पूछो क्या है इनका मान।
ऐसे कर्मो पर आती,
मानवता को शर्म है।
जाने एक मां भी,
कैसी बेरहम है।
इनमें भी धड़कन है,
इनमें भी सांस हैं।
दरिंदों ने तो फेंक दिया,
पर जीने की इनमे आस है।
प्रभु !तू इनके साथ इँसाफ करता,
इन्हें देकर किसी बेऔलाद की गोद भरता।
एक मां की झोली ममता से भर जाती,
और इनकी किस्मत में भी खुशियां आ जाती।
हम खुद इनके लिए हर पल तरसते हैं ,
इस ममता को पाने के लिए दर दर भटकते हैं।
(स्वरचित)
एकता शर्मा

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