खुल गई है मधुशाला
मंदिर मस्जिद बंद रहेंगे!
शाला में लटका है ताला!!
चहूँओर जनसैलाब उमड़ा!
भर भर पेटी लाये हाला !!
खुल गई जब मधुशाला!
कंधे से कंधा मिला खडे हैं!
मदिरालय के दर पे पडे हैं!!
तालाबंदी रख दी ताक पर !
प्यासे कंठ को मिला प्याला !!
खुल गई जब मधुशाला!
सरकारी धन बरस रहा है!
मदिरालय भर कर दे रहा है !!
तालाबंदी को ठेंगा दिखाया !
रोजगार को लगा है ताला!!
खुल गई जब मधुशाला !
भर पेट नसीब नहीं है रोटी !
पत्नी की आँखे सूजे मोटी !!
जाम छलकाये रेहड़ी वाला!
कमर लगा पेट सूखा काला!!
खुल गई जब मधुशाला !
नशा मुक्ति का जतन न कोई!
नशेबाजी की आदत बढाईं !!
राशन पानी नसीब नहीं है !
जनता के हाथों में हाला !!
खुल गई जब मधुशाला!
जनता रोती और कलपती!
सब सोचे ये तालाबंदी कैसी !!
कोरोना मुक्त हो भारत कैसे !
कानून करें कर्म जब काला !
खुल गई जब मधुशाला!!
विश्व महामारी से जूझ रहा है !
सिर पे मौत का संकट खड़ा है !!
बिल्ली देख नयना ज्यों मूंदें!
कपोत बने अफसर सब बैठे !
कोरोना बने न अध्याय काला !!
खुल गई जब मधुशाला !
✍ सीमा गर्ग मंजरी
मेरी स्वरचित रचना
मेरठ
वाह वाह सीमा जी, गज़ब की रचना।
ReplyDeleteसुंदर रचना। मैंने भी इसी प्रकर की रचना दो माह पूर्व लिखी थी। मुलयजा फरमाए।
ReplyDeleteबन्द रहेगें मंदिर मस्जिद,
खुली रहेगी अब मधुशाला।
भेजी किसने ये महामारी,
पूछ रहा है ये पीने वाला।
पीने की कोई सीमा नही,
जब बैठ गए हम मधुशाला।
देवी देवता तरस रहे हैं अब
कौन खोले उनका अब ताला।।
खूब लिखा दी
ReplyDeleteबेहतरीन रचना